इन समस्याओं के समाधान के लिए समाज की सख्त जरूरत को देखते हुए, कॉर्पोरेट क्षेत्र को उम्मीद है कि उनके भयावक जीएमओ सार्वजनिक समर्थन हासिल कर सकते हैं और वह आसानी से जैव सुरक्षा नियमों को चकमा देने में कामयाब हो सकते हैं। एशिया में, जहां आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों और खाद्य पदार्थों के प्रचार को न केवल कृषि व्यवसाय और कारपोरेट जगत, बल्कि सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित संस्थानों (public funded institutions) द्वारा जबरदस्ती धकेला जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप जीएमओ को नियंत्रित करने वाले कानूनों, विनियमों और मानकों में एशियाई सरकारों लगातार ढ़िलाई दी जा रही है और उन्हें कमज़ोर बनाया जा रहा है।
एशिया में जीएमओ द्वारा होना वाला नुक्सान बहुत भयावक हो सकता है क्योंकि यहाँ अधिकांश लोग अभी भी जीविका के लिए अपने पारंपरिक बीजों पर निर्भर हैं। जीएमओ की नई जीन-संपादन तकनीक एशियाई किसानों की पारंपरिक बीज विरासत को हड़पने और देसी बीज जैसे जैव पदार्थों की चोरी (बायो पायरेसी) को अंजाम देना का एक प्रमुख हथ्यार बन सकते है। बांग्लादेश में, बीटी-बैंगन को खेती की अनुमति मिलते ही, मोनसेंटो ने नौ बांग्लादेशी स्वदेशी बैंगन किस्मों के बौद्धिक संपदा का अधिकार प्राप्त कर लिया । वियतनाम में, मोनसेंटो के शाकनाशी सहिष्णु रसायन “एजेंट ऑरेंज”का छिड़काव 40 साल पहले अमरीका-वियतनाम युद्ध के दौरान किया गया था, और अब कंपनी अपने जीएम मकई पर छिड़काव करने के लिए एक और घातक शाकनाशी सहिष्णु रसायन 'राउंडअप' (या ग्लाइफोसेट) के साथ वापसी की तैयारी कर रही है।
लेकिन ऐसा नहीं है के ये नई जीएमओ तकनीक को कोई चुनौती नहीं मिल रही। एशिया में उपभोक्ताओं और किसानों का एक बड़ा समूह जीएमओ का कड़ा विरोध कर रहा है। भारत में, सामाजिक आंदोलनों और नागरिक समाज ने जीएमओ संदूषण के खतरे से अभी तक दर्जनों स्थानीय बैगन एवं सरसों की किस्मों को बचाने में सफलतापूर्वक कामयाबी हासिल की। मगर पता नहीं ये देसी धरोहर कब तक कारपोरेट चंगुल से बच पायेगी।
इस रिपोर्ट में, हम सात एशिया प्रशांत देशों: जापान, फिलीपींस, चीन, भारत, बांग्लादेश, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया में जीएमओ की स्थिति और उनके प्रति लोगों के प्रतिरोध पर प्रकाश डाल रहे हैं।