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पर्यावरण की शब्दावली का उपयोग कर अपने स्वार्थ को साध रही बड़ी कृषि कंपनियां

by GRAIN | 3 May 2023

विश्व स्तर पर खाद्य व्यवस्था आज क्षत-विक्षत है, टूट रही है। यह विश्व स्तर पर हो रहे ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन में से एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है। विश्व में जैव विविधता उजड़ने का भी यह एक प्रमुख कारण है। दूसरी ओर विश्व में दस में से एक व्यक्ति को भूखे पेट सो जाना पड़ता है, जबकि करोड़ों लोग अस्वास्थ्यकर भोजन से जुड़ी मधुमेह, मोटापे, कैंसर जैसी बीमारियों से त्रस्त होते हैं। मौजूदा विश्व खाद्य व्यवस्था नए रोगों व महामारियों के लिए भी एक मुख्य कारक है।

सामाजिक आंदोलन व समुदाय कई दशकों से इस मौजूदा हानिकारक खाद्य व्यवस्था के विकल्प तैयार करने के लिए प्रयासरत हैं। इनमें से अनेक आंदोलन अपनी पहचान खाद्य संप्रभुता के विश्व स्तर के आंदोलन के एक भागीदार के रूप में करते हैं जिसमें खाद्य उत्पादन स्थानीय समुदायों की जरूरतों व संस्कृति पर आधारित हैं व स्थानीय पर्यावरण की रक्षा पर आधारित हैं व दूर-दराज की कंपनियों के मुनाफे पर आधारित नहीं है। जमीनी स्तर के कृषि प्रयास देशीय व लघु कृषक समुदायों के उस ज्ञान पर आधारित हैं जो अनेक पीढ़ियों के अनुभवों से एकत्र हुआ है व जिससे आज हमें जलवायु बदलाव के संकट से जूझने के उपाय भी मिलते हैं। अनेक आंदोलन इन प्रयासों व प्रवृत्तियों को ‘एग्रो इकालाजी’ या कृषि पारिस्थितिकि’ का नाम देते हैं यानि ऐसी कृषि व्यवस्था जो सही अर्थों में पर्यावरण की सही समझ व उसकी रक्षा पर आधारित हों।

कृषि को बहुत बड़े बिजनेस की तरह अपनाने वाली बड़ी कंपनियों के स्वार्थों के लिए खाद्य संप्रभुता व ‘कृषि पारिस्थितिकि’ की सोच से बहुत कठिनाई उत्पन्न होती है। खाद्य संप्रभुता व ‘कृषि पारिस्थितिकि’ की व्यवस्था में इन बड़ी कंपनियों के मुनाफे के लिए कोई स्थान नहीं है। इनमें उन जेनेटिक रूप से संवर्धित फसलों या जीवन रूपों (जीएमओ), संकरित बीजों व कृषि रसायनों का उपयोग नहीं होता है जिन्हें कृषि बिजनेस कंपनियां बेचती हैं। उनसे वैसी एकरूपता वाली फसलों की आपूर्त्ति भी नहीं होती है जो कृषि बिजनेस कंपनियों की प्रोसेसिंग फेक्ट्रियों या फैक्ट्री जैसे फार्मों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस स्थिति में जब सामाजिक आंदोलन आगे बढ़ रहे हैं व खाद्य संप्रभुता और ‘कृषि पारिस्थितिकि’ को जलवायु बदलाव के संकट के एक महत्त्वपूर्ण समाधान के रूप में बढ़ती मान्यता मिल रही है तो उनके महत्त्व व प्रभाव को कम करने या क्षतिग्रस्त करने के लिए बड़ी कृषि व खाद्य बिजनेस कंपनियों ने अपने प्रयास तेज कर दिएं हैं।

इन कुप्रयासों में कृषि बिजनेस कंपनियों का एक मुख्य उपाय है ग्रीनवाशिंग यानि पर्यावरण रक्षा के बारे में ऐसी भ्रामक स्थिति उत्पन्न करना जिससे उनका उल्लू सीधा हो सके, उनके स्वार्थ सध सकें। यह इन कंपनियों का अपना व्यवसाय व बिक्री बढ़ाने तथा विज्ञापन का ऐसा उपाय है जिससे यह कंपनियां पर्यावरण समस्याओं को स्वीकार तो करती हैं पर साथ में ऐसी भ्रामक व असत्य जानकारी प्रसारित करती हैं जिससे यह प्रतीत हो कि उनके कार्यों, व्यवसाय व उत्पादों से इन पर्यावरण समस्याओं का समाधान हो रहा है। यदि आप इन बड़ी कृषि व खाद्य कंपनियों की वेबसाईट को या इनकी वार्षिक रिपोर्टों को देखें तो आपको पहली नजर में ऐसा भ्रम हो सकता है कि इनका उद्देश्य धरती को बचाना व जलवायु बदलाव की समस्या का समाधान है। इनका दावा है कि वन विनाश को राकेंगे, जैव विविधता को बचाएंगे, जलवायु बदलाव के संकट का समाधान करेंगे, भूख की समस्या दूर करेंगे। वे मानव अधिकारों व देशीय समुदायों के भूमि-अधिकारों की रक्षा का दावा भी करती हैं। इन दावों के बावजूद वे उन्हीं उत्पादों को बेचते रहते हैं व वस्तु उत्पादन तथा उपभोग के ऐसे ही मॉडल का प्रसार करते रहते हैं जो हमारी धरती को बर्बाद कर रहे हैं और अपनी जैव-विविधता व भूमि पर लोगों की हकदारी व नियंत्रण को क्षतिग्रस्त कर रहे हैं। जिस तरह शेल (Shell) व एक्सान (Exxon) जैसी कंपनियों ने ग्रीनवाशिंग’ का उपयोग कर किसी न किसी तरह पर्यावरण रक्षा के प्रति अपनी गंभीरता सिद्ध करने का प्रयास किया है, उसी तरह खाद्य व कृषि बिजनेस कंपनियों ने इसका उपयोग लोगों को भ्रमित करने या ऐसी कार्यवाही से बचने के लिए किया है जिसका उनके मुनाफों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

निम्न पृष्ठों में, हमने ग्रीनवाशिंग के कुछ हथकंडों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो झूठे समाधान प्रस्तुत करते हैं व जलवायु बदलाव के समाधानों से ध्यान हटाते हैं।

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Author: GRAIN
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  • [1] https://grain.org/system/articles/pdfs/000/006/984/original/Hindi_An%20agribusiness%20greenwashing%20glossary_Dec2022.pdf?1683129335